उत्तराखंड सचिवालय में भवनों की कमी परेशानी का सबब बनी हुई है

उत्तराखंड सचिवालय में भवनों की कमी परेशानी का सबब बनी हुई है

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड के लिए जिस सचिवालय से नीतियां तैयार की जाती हैं, उसी सचिवालय में अधिकारी आदर्श कार्यशैली स्थापित नहीं कर पा रहे हैं। हैरत की बात यह है कि पूरे प्रदेश में ट्रांसफर पॉलिसी को लागू करवाने वाली शीर्षस्थ संस्था पारदर्शी ट्रांसफर पॉलिसी का इंतजार कर रही है।

ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड सचिवालय में सचिवालय सेवा से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए कोई तबादला नीति ना हो। साल 2007 में सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा सचिवालय कर्मियों के लिए ट्रांसफर पॉलिसी लाई गई।

इसमें ऐसे कई नियम तय किए गए, जिससे तबादले पारदर्शी रहें। लेकिन इसके बावजूद कई ऐसे अधिकारी और कर्मचारी अपनी धाक कायम रखने में कामयाब रहे, जिन्होंने अहम जिम्मेदारियों को ना केवल पाया, बल्कि तबादला नीति में तय नियमों से ज्यादा समय से विभाग में कायम हैं।

उत्तराखंड सचिवालय में अफसरों के लिए कार्यालय की उपलब्धता आसान नहीं है। यहां मौजूद दफ्तर इस कदर खचाखच भरे हैं, कि नई तैनाती पाने वाले अफसरों को भी दफ्तर के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है। स्थिति यह है कि हाल ही में एक आईएएस अफसर को कार्यालय रिनोवेशन के दौरान दूसरे आईएएस अधिकारी से कार्यालय शेयर करना पड़ रहा है।

हालांकि परेशानी कर्मचारी स्तर पर भी है जहां अनुभागों को भी उचित स्थान नहीं मिल पा रहा है। उत्तराखंड सचिवालय में तमाम विभागों के अनुभागों से लेकर अफसरों तक के कार्यालय मौजूद है।

यूं तो बहु मंजिला इमारत में अधिकारियों और कर्मचारियों को कार्यालय आवंटित किए गए हैं। लेकिन भवनों की सीमित संख्या के चलते यहां अकसर अफसरों और कर्मियों को भी कार्यालय के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है।

इन दिनों सचिवालय में आईएएस अधिकारी वी षणमुगम के कार्यालय में मरम्मत का काम चल रहा है। स्थिति यह है कि पिछले कई दिनों से मरम्मत का काम जारी है और इस दौरान सचिव वित्त अपने कार्यालय के करीब सचिव समाज कल्याण के दफ्तर से ही काम चला रहे हैं।

अपनी विभिन्न बैठकों को सचिव वित्त साथ सचिव के दफ्तर में ही कर रहे हैं। सचिवालय में दफ्तरों की कमी और आईएएस अधिकारी को कार्यालय के रैनोवेशन के दौरान वैकल्पिक कार्यालय की उपलब्धता न होने पर सचिवालय प्रशासन सचिव ने कहा कि आईएएस अधिकारी को अपने साथी अफसर के दफ्तर का उपयोग करना पड़ रहा है इसकी उन्हें जानकारी नहीं है।

जहां तक सवाल सचिवालय में कार्यालय की कमी का है तो वह इस बात को मानते हैं कि सचिवालय में अफसरों के लिए कार्यालय पर्याप्त संख्या में उपलब्ध नहीं है।

इस मामले में सचिवालय संघ के महासचिव ने कहा कि सचिवालय संघ पिछले लंबे समय से सचिवालय में कार्यालयों की कमी की बात कहता रहा है और यह बात मुख्य सचिव से लेकर मुख्यमंत्री तक के सामने भी रखी जा चुकी है।

हालांकि इसके लिए सरकार के स्तर पर प्रयास भी हुए हैं और एक अलग भवन निर्माण की प्रक्रिया को भी आगे बढ़ाया गया है। हालांकि मौजूदा स्थिति में देखें तो भवनों की कमी की बात बिल्कुल सही है।

उत्तराखंड सचिवालय में कुछ ऐसे अनुभाग भी हैं जो यह बात कह चुके हैं कि उनके यहां फाइलों को रखने की भी पर्याप्त जगह नहीं है और इसके लिए उन्हें एक अलग कार्यालय की आवश्यकता है।

इतना ही नहीं संबंधित विभाग के सचिव भी इसकी पैरवी करती रही है, लेकिन इसके बावजूद भी सचिवालय प्रशासन के स्तर पर इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। जाहिर है कि सचिवालय कैंपस में पर्याप्त संख्या में कार्यालय ही नहीं है।

ऐसे में इस समस्या का मौजूदा स्थिति में समाधान होना काफी मुश्किल है। फील्ड के अधिकारियों को सचिवालय में पोस्टिंग के दौरान लंबे समय तक बिना कार्यालय ही रहना पड़ता है और काफी मशक्कत के बाद इन्हें कई दिनों में कार्यालय आवंटित हो पाते हैं।

सचिवालय प्रशासन उत्तराखंड के तमाम विभागों का आदर्श है, इसके बावजूद सचिवालय में लंबे समय से चली आ रही कार्यालयों की परेशानी दूर नहीं हो पा रही है।

उधर सचिवालय से सटी प्रॉपर्टी पर सरकार कुछ निर्माण की तैयारी कर रही है, ताकि आम लोगों को कुछ सहूलियत मिल सके। विधानसभा सचिवालय और विभिन्न विभागों के मुख्यालय को स्थापित करना अभी दूर की कौड़ी नजर आ रहा है। दरअसल नई विधानसभा प्रोजेक्ट के लिए शासन को दोबारा आवेदन करने में ही एक साल का वक्त लग गया है।

उधर पूर्व में मिली सैद्धांतिक सहमति को केंद्र ने यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि सरकार इस मामले में काम गंभीर नजर आ रही है। बहरहाल अब एक बार फिर परिवेश पोर्टल के माध्यम से केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी लेने के प्रयास शुरू किए गए हैं। उत्तराखंड सरकार ने रायपुर में नए विधानसभा भवन प्रोजेक्ट पर पहला मौका खोने के बाद अब फिर से प्रयास शुरू कर दिए हैं।

हालांकि साल 2013 में नए विधानसभा भवन समेत अन्य महत्वपूर्ण कार्यालय को स्थापित करने के लिए शासन में फाइल बनना शुरू हो गया था। जिसके बाद साल 2016 में तमाम औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से सैद्धांतिक मंजूरी मिली थी।

यानी करीब 3 साल का लंबा वक्त राज्य को इस मंजूरी को पाने में लगा था। लेकिन तब सरकार के यह सभी प्रयास धराशायी हो गए थे, जब साल 2023 दिसंबर में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने पूर्व में मिली सैद्धांतिक मंजूरी को रद्द कर दिया था।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने वन भूमि पर मंजूरी दिए जाने की आपत्ति के अलावा राज्य सरकार द्वारा करीब 6 से 7 साल तक इस पर कोई भी कदम आगे नहीं बढ़ाने की बात कही थी।

इतना ही नहीं केंद्र ने राज्य सरकार के इस प्रोजेक्ट पर गंभीर नहीं होने की बात भी कही थी। देहरादून के रायपुर क्षेत्र में विधानसभा, सचिवालय और विभिन्न विभागों के मुख्यालयों के खटाई में पड़ने से न सिर्फ राज्य सरकार, बल्कि रायपुर और डोईवाला के एक बड़े इलाके में रहने वाले लोगों को भी तगड़ा झटका लगा है।

ऐसा इसलिए क्योंकि रायपुर में विधानसभा, सचिवालय और विभागों के मुख्यालय बनने के प्रस्ताव के साथ ही इसके आसपास के एक बड़े इलाके को फ्रीज जोन घोषित कर दिया गया था। फ्रीज जोन के चलते इस इलाके में बंद हो गई जमीन की खरीद फरोख्तः दरअसल, गैरसैंण में 13 मार्च 2023 को उत्तराखंड कैबिनेट ने बड़ा फैसला लिया था।

इस फैसले में रायपुर और डोईवाला के कई क्षेत्र फ्रीज जोन घोषित कर दिए गए। फ्रीज जोन करने के चलते इस इलाके में जमीन की खरीद फरोख्त बंद हो गई थी।

इस फैसले की वजह से इस इलाके में लोग न तो जमीन खरीद पा रहे हैं और न ही बेच पा रहे हैं। इससे लोगों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

लोगों को सरकार से उम्मीद थी कि जल्द ही इस इलाके में सरकार तमाम औपचारिकताओं को पूरा कर अपने प्रोजेक्ट शुरू करेगी और उसके बाद फ्रीज जोन की पाबंदियों को खत्म किया जाएगा।

लेकिन इतना लंबा समय बीतने के बाद भी सरकार फिर शून्य पर आकर खड़ी हो गई है। इसके बावजूद भी इस क्षेत्र को फ्रीज जोन से मुक्त नहीं किया गया है। उत्तराखंड में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किए जाने के बाद देहरादून में विधानसभा निर्माण का राज्य आंदोलनकरियों द्वारा विरोध भी किया जाता रहा है।

दरअसल, देहरादून में मौजूद विधानसभा पूर्व में विकास भवन था, जिसे राज्य बनने के बाद विधानसभा के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा, लेकिन यहां पर विधायी कार्यों को लेकर कई तरह की दिक्कतें सामने आती रही हैं।

गैरसैंण में करोड़ों रुपए खर्च करके विधानसभा भवन तैयार किया गया है। ऐसे में देहरादून में भी विधानसभा भवन बनाने में सैकड़ों करोड़ का बजट खर्च होना तय है। शायद यही कारण है कि कई लोग इसका विरोध भी कर रहे थे।

माना जा रहा है कि रायपुर में प्रस्तावित कार्यों में करीब ₹4500 करोड़ तक का खर्च संभावित है। उत्तराखंड में विभिन्न कार्यों को लेकर लेटलतीफी इस प्रोजेक्ट पर भारी पड़ी है।

इसके कारण उत्तराखंड का करोड़ों रुपया केंद्र में जमा होने के बावजूद सरकार को एक बार फिर इस प्रोजेक्ट पर होमवर्क करने की जरूरत पड़ रही है। कर्मचारियों की सौगात की कोई संभावना अभी भी बाकी है?

लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।

Yogi Varta

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