जड़ों से जुड़ाव की खूबसूरत दास्तान – “मैरे गांव की बाट“ फिल्म

शान सेे इतिहास मेें दर्ज हुई पहली जौनसारी फिल्म, अभिनव के रूप में चमका नया सितारा
उत्तराखंडी जौनसारी संस्कृति की सबसे बड़ी खासियत क्या है। आपसे कभी यह प्रश्न पूछा जाए, तो स्वाभाविक तौर पर आपका उत्तर होगा-जड़ों से जुड़ाव।
जौनसारी की पहली फीचर फिल्म मैरे गांव की बाट के मूूल में जड़ों से जुड़ाव की ये सच्चाई मौजूद है। ऐसी सच्चाई कि कोई किन्हीं कारणों से कुछ समय के लिए अपनी जड़ों से दूर हो भी जाए, तो फिर भी उसे लौटकर आना ही होता है। उसके गांव का बाट यानी रास्ता उसका हमेशा इंतजार करता रहता है। उसके लिए हमेशा खुला रहता है।
इंतजार लंबा खिंचा, लेकिन जौनसार बावर की अपनी पहली फीचर फिल्म का सपना हकीकत में बदल ही गया है। मैरे गांव की बाट फिल्म इतिहास में दर्ज हो गई है।
गढ़वाली की पहली फिल्म जग्वाल से पाराशर गौड़ और कुमाऊंनी फिल्म मेघा आ से जीवन सिंह बिष्ट को जो सम्मान मिला, उसी तरह की स्थिति में अब मैरे गांव की बाट फिल्म के परिकल्पना एवं प्रस्तुतकर्ता केएस चौहान भी आ गए हैं। उनके साथ निश्चित तौर पर फिल्म के कहानीकार व निर्देशक अनुज जोशी का जिक्र जरूरी है, जिन्होंने काफी मेेहनत की है।
मैरे गांव की बाट फिल्म की कहानी सीधी सरल है, लेकिन इसका प्रस्तुतिकरण दमदार है। प्रादेशिक फ़िल्मों में इस फिल्म ने नया इतिहास बना दिया है 5 दिसंबर से फिल्म उत्तराखंड के अलावा हिमाचल में भी हाउसफुल चल रही है, फिल्म में अभिनेता अभिनव चौहान ने कमाल का अभिनय तो किया ही है साथ में फिल्म के टाइटिल वेदह को बहुत ही शानदार गाया है।
जौनसार बावर के लोक समाज की परंपराएं, रीति रिवाज, रहन-सहन, मान्यताएं, विश्वास, स्वाभिमान सब कुछ फिल्म में दिखता है। सिनेमेटोग्राफी कमाल की है। यही वजह है कि पर्दे पर जौनसार बावर उतना ही खूबसूरत नजर आता है, जितना कि वह वास्तव में है।
देखा जाए, तो अभिनव चैहान के युवा कंधों पर फिल्म का ज्यादातर भार टिका हुआ है। अभिनव की प्रतिभा के रंग फिल्म में जमकर बिखरे हैं। आयुष गोयल के साथ वह फिल्म के निर्माता की भूमिका में हैं। वह फिल्म के हीरो हैं और उन्होंने प्ले बैक सिंगिंग भी की है।
अभिनव संभावनाओं से भरे हुए हैं। उत्तराखंडी सिनेमा जगत में मैरे गांव की बाट उनकी दूसरी फिल्म है। इससे पहले, गढ़वाली फिल्म असगार में बतौर हीरो उनके काम को काफी सराहना मिली थी।
अब मैरे गांव की बाट में वह जलवे बिखेर रहे हैं। कॉलेज के जमाने में एकिं्टग व डायरेक्शन में एंट्री मारकर उन्होंने जो सीखा-समझा, इस फिल्म में आउटकम आता दिखाई देता है। उनके अपोजिट प्रियंका का काम भी फिल्म में अच्छा है। बाकी कलाकारों में, जिसको जो जिम्मेदारी मिली है, उसने उसे अच्छे से निभाया है।
जौनसारी समाज जीवन में गीत-संगीत-नृत्य मजबूती से शामिल है। इसलिए फिल्म में एक के बाद एक कई गीत सामने आते हैं। गीत-संगीत का विभाग फिल्म का मजबूत पक्ष है, जो मनोेरंजन करने से लेकर जौनसारी लोक संस्कृति के हर पक्ष को प्रभावी ढंग से उभारने में सफल दिखता है। गीत-संगीत विभाग को संभालने वाले अमित वी कपूर, श्याम सिंह चौहान और सीताराम चौहान इसके लिए तारीफ के हकदार हैं।
आप यदि जौनसारी नहीं भी है, तो भी आप आसानी से यह समझ सकते हैं कि फिल्म क्या कहना चाहती है। आप यदि पहाड़ से प्रेम करते हैं। जौनसारी संस्कृति को जानने में आपकी दिलचस्पी है। जौनसार के विहंगम प्राकृतिक दृश्यों, वहां के रहन-सहन, परंपराओं को देखना चाहते हैं, तो यह फिल्म फिर आपके लिए ही है।