बुराँश को खाने से पहले की जाती है पूजा… बिना पूजा के खा लिया तो बुराँश बन जाता है जहर…

बुराँश को खाने से पहले की जाती है पूजा… बिना पूजा के खा लिया तो बुराँश बन जाता है जहर…

आजकल बसंत का मौसम चल रहा हैं और हर जगह रंग बिरंगे फूल खिले हुए दिखाई दे रहे हैं। बुराँश का फूल भी अनेक पौष्टिक औषधियों से भी भरपूर होता है। जी हाँ…आज आपको लिए चलते हैं बुराँश के जंगलों में और बताते इसकी खासियत और आपको दीदार कराते हैं इसकी खूबसूरती की। बुराँश के साथ लिपटी है पहाड़ की जिंदगी और बचपन। बुराँश जितना नाजुक उससे ज्यादा नाजुक बचपन।

बुराँश के साथ हम पहाड़ियों की आधी जवानी साथ साथ चलती है। नौकरी पेशे की तलाश में पहाड़ छूटता है लेकिन बुराँश की यादें हमेशा तरो ताज़ा ही रहती हैं। बुराँश के आज लोग कई फायदे गिना रहे हैं, बता रहे हैं बुराँश आयुर्वेदिक गुणों की खान है बता रहे हैं, बुराँश का जूस भी खूब धमाल मचा रहा है, ये अलग बात है कि इस जूस में जमकर चीनी घोली रहती है।

हम पहाड़ियों को बुराँश की खूबसूरती आज से नहीं सदियों से आकर्षित करती आ रही है। बुराँश के प्राकृतिक और आयुर्वेदिक गुणों को विशेषज्ञ आज तलाश रहे हैं, हमारे बुजुर्गों ने इसकी खोज आज नहीं सदियों पहले ही कर ली थी। हमारे पहाड़ में बुराँश को बहुतायत में खाने की परंपरा है।

मुछ्यार… यानी ग्रीन सलाद… खासकर बच्चों का तो ये सबसे अधिक लोकप्रिय था और है। बुराँश को कई तरह से खाने के प्रयोग में लाया जाता है। ज्यादातर इसे आजकल धनिया पत्ती, लहसुन पत्ती, प्याज पत्ती, अल्मोड़ा पत्ती, पुदीना पत्ती, कंडारू की जड़ ओर बुराँश के फूलों को बारीक काटकर इसमें नमक, मिर्च, प्याज, मूली, गाजर स्वाद अनुसार मिलाकर खाने की परंपरा सदियों पुरानी है। इस मिश्रण को गढ़वाली में मुछ्यार कहते हैं यानि ग्रीन सलाद। बहुत ही पौष्टिक।

बुराँश की जंगल में पूजा की जाती है, और जंगल में ही पूजा के बाद बनाए जाते हैं व्यंजन और तरह तरह के पकवान… बुराँश को बिना पूजा के खा लिया तो बन जाता है जहर, ये किंवदंती नहीं हकीकत है। यकीन नहीं तो बिना पूजा के खा लो तो मान जाएंगे। एक बार पूजा हो जाये तो चाव से खाइए बुराँश, जितना मन करे जी भरकर खाइए। लेकिन पूजा अवश्य होनी चाहिए। चाहे कहीं भी हो, किसी ने भी की हो।

अब आप सोच रहे होंगे कि हमने बिना पूजा किए बुराँश खूब खाए हैं, चाव से खाए हैं लेकिन कुछ नहीं हुआ। दरअसल गांव वाले बुराँश खिलने पर अपने अपने गांव में जंगलों में जाकर इस बुराँश फूल की पूजा करते हैं खाने से पहले। एक बार बुराँश की पूजा हो जाये तो कोई भी खा सकता है। इसलिए जब पूजा हो जाती है तो उसे कोई भी खा सकता है, इसलिए नुकसान नहीं होता है।

बुराँश के फूलों की पूजा बच्चे लोग करते हैं और बड़े उसमें सहयोग करते हैं। इस विषेश पूजा का नाम है “अयांर कुट्टू”। जंगलों से बुराँश के फूल निकाले जाते हैं, अयांर के पत्तों के साथ मिलाकर इसको पीसा जाता है, धूप दीप, पिठाईं और पकवान बनाकर पूजा के बाद बुराँश को खाने की शुरुआत की जाती है।

उत्तराखंड के जंगल आजकल बुराँश (रोडोडेंड्रम) के फूलों से लकदक हैं। प्रकृति भी आजकल उत्तराखंड में बुराँश, फयूंली, पैंया, गुरियाल, आरू, चुलु के फूलों के साथ होली के सतरंगों के साथ होली मना रही है। ऐसे ही एक बेहद खूबसूरत बुराँश के फूलों से लकदक फूलों पेड़ों के साथ आपको लिए चलते हैं अपने गांव के मिश्रित जंगलों में।

साभार — लोकेंद्र सिंह बिष्ट

Yogi Varta

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