जैविक बनाम प्राकृतिक खेती : एक तुलनात्मक विवेचन

जैविक बनाम प्राकृतिक खेती : एक तुलनात्मक विवेचन

डॉ. राजेन्द्र कुकसाल

वर्तमान समय में टिकाऊ और स्वास्थ्यवर्धक कृषि पद्धतियों की ओर लौटने की आवश्यकता को लेकर जैविक तथा प्राकृतिक खेती जैसे विकल्पों की चर्चा व्यापक रूप से हो रही है।

दोनों ही पद्धतियाँ रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से मुक्ति का मार्ग सुझाती हैं, किंतु इनके मूल सिद्धांत, दृष्टिकोण, तकनीकी प्रविधियां एवं आर्थिक दृष्टिकोण भिन्न हैं। इस लेख में जैविक एवं प्राकृतिक खेती के बीच मूलभूत अंतर को वैज्ञानिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है।

मूल दृष्टिकोण और उत्पत्ति

जैविक खेती एक विदेशी अवधारणा है, जो मुख्यतः प्रमाणित आदानों, जैविक उर्वरकों, कीटनाशकों और मानकीकृत प्रक्रियाओं पर आधारित है। इसमें बाहरी निवेश की आवश्यकता होती है।

जैविक खेती के लिए विशेष किस्म के बीज, कम्पोस्ट, वर्मी कंपोस्ट (विशेषकर Eisenia Fetida केंचुओं द्वारा निर्मित), जैविक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है।

वहीं, प्राकृतिक खेती भारतीय सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित है। यह ईश्वरीय सृजन व्यवस्था का अनुसरण करती है, जिसमें प्रकृति स्वयं पोषण और रक्षा की व्यवस्था करती है।

सबसे पहले इस अवधारणा को जापान के कृषि दार्शनिक मसानोबू फुकुओका ने 1975 में अपनी पुस्तक The One-Straw Revolution में प्रस्तुत किया। भारत में इस पद्धति को पद्मश्री सुभाष पालेकर द्वारा “जीरो बजट प्राकृतिक खेती” (ZBNF) के रूप में लोकप्रिय किया गया।

सिद्धांत और आधार

जैविक खेती एक विशिष्ट वैज्ञानिक प्रणाली है जो रासायनिक आदानों को हटाकर जैविक आदानों से खेती करने पर बल देती है। यह उत्पादन आधारित मॉडल है, जिसमें प्रमाणीकरण, गुणवत्ता नियंत्रण, और निर्यात के लिए मानकीकरण आवश्यक है।

प्राकृतिक खेती एक समग्र, ज्ञान-विज्ञान एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण है, जो प्रकृति के पंचतत्व — पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश पर आधारित है।

यह खेती केवल फसल उत्पादन नहीं, अपितु प्रकृति, पर्यावरण, मानव और मृदा के सामंजस्य को पुनर्स्थापित करने का प्रयास करती है।

पोषण और मृदा स्वास्थ्य

जैविक खेती में पोषण मुख्यतः कम्पोस्ट, वर्मी कंपोस्ट, हरी खाद, ह्यूमिक एसिड, समुद्री शैवाल अर्क, और अनुमोदित जैविक आदानों से दिया जाता है। इसकी लागत तुलनात्मक रूप से अधिक होती है।

प्राकृतिक खेती में मिट्टी को जीवंत इकाई माना गया है। पेड़-पौधे 98% पोषण वायु, जल और सूर्य से प्राप्त करते हैं और शेष 2% पोषण मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों, केंचुओं और जैविक प्रक्रियाओं से मिलता है।

प्राकृतिक खेती में जीवामृत, बीजामृत, आच्छादन, देशी गाय का गोबर और गौमूत्र मुख्य संसाधन हैं। ये सूक्ष्मजीवों को सक्रिय कर मृदा को उपजाऊ और क्रियाशील बनाते हैं।

प्रमाणीकरण और बाज़ार

जैविक खेती के उत्पादों के लिए तीसरे पक्ष प्रमाणीकरण आवश्यक होता है। भारत में The National Programme for Organic Production (NPOP) के अंतर्गत APEDA द्वारा अनुमोदित एजेंसियां प्रमाणीकरण करती हैं। प्रमाणीकरण, निर्यात के लिए अनिवार्य है।

प्राकृतिक खेती में प्रमाणीकरण की औपचारिकता नहीं होती। यह उत्पादक और उपभोक्ता के बीच विश्वास पर आधारित है। स्थानीय बाज़ारों और प्रत्यक्ष विपणन के माध्यम से इस मॉडल को बढ़ावा दिया जाता है।

लागत और लाभ

जैविक खेती में बाहरी निवेश अधिक होता है — बीज, खाद, कीटनाशक, प्रमाणीकरण आदि की लागत के कारण यह अपेक्षाकृत महंगी होती है।

प्राकृतिक खेती, विशेष रूप से ZBNF, ‘शून्य लागत’ मॉडल है। इसमें मुख्य फसल के साथ सहफसलों की योजना बनाई जाती है जिससे लागत की भरपाई होती है। यह पद्धति छोटे और सीमांत किसानों के लिए अत्यधिक उपयुक्त है।

मृदा: एक जीवंत तंत्र

मृदा को अक्सर एक निर्जीव भौतिक इकाई के रूप में देखा जाता है, लेकिन वास्तव में यह एक जीवंत तंत्र है। इसकी जैविक, भौतिक और रासायनिक संरचना में संतुलन ही उपज और गुणवत्ता का निर्धारण करता है। प्राकृतिक खेती मृदा को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया है, न केवल फसल उगाने का माध्यम।

जहां जैविक खेती एक मानकीकृत तकनीकी प्रक्रिया है, वहीं प्राकृतिक खेती एक आजीविका, जीवनदर्शन और प्रकृति-केन्द्रित समग्र दृष्टिकोण है।

दोनों ही पद्धतियां रासायनिक खेती से बेहतर विकल्प हैं, लेकिन प्राकृतिक खेती की स्थायित्व, पर्यावरण संरक्षण और आत्मनिर्भरता पर आधारित संरचना इसे ग्रामीण भारत के लिए अधिक उपयुक्त बनाती है।

आज आवश्यकता है कि हम आधुनिक विज्ञान और भारतीय अध्यात्म दोनों का संतुलन बनाते हुए ऐसी खेती को अपनाएं जो प्रकृति के अनुरूप हो, मृदा को जीवन दे, किसान को आत्मनिर्भर बनाए और उपभोक्ता को स्वास्थ्य।

Yogi Varta

Yogi Varta

Related articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *