पुलवामा आतंकी हमले में सुरक्षा तंत्र की जवाबदेही तय हो

पुलवामा आतंकी हमले में सुरक्षा तंत्र की जवाबदेही तय हो

22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में 28 निर्दोष भारतीय पर्यटकों की नृशंस हत्या कोई एकाकी त्रासदी नहीं, बल्कि हमारे सुरक्षा तंत्र की प्रणालीगत चूकों, राज्य की उदासीनता और एक प्रतिक्रियाशील व्यवस्था का खौफनाक प्रमाण है।

पाकिस्तान की ISI प्रायोजित आतंकी संरचना के मोहरे, ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF)’ ने भारत की मुख्य भूमि में घुसकर यह हमला किया। इस हमले की योजना, रेकी और क्रियान्वयन बिना किसी रुकावट के हो जाना हमारे तंत्र की गहरी कमजोरियों को उजागर करता है — जिन्हें तत्काल और कठोर सुधार की आवश्यकता है।

एक सैनिक और अर्धसैनिक बलों के अनुभवी के रूप में, मैं एक ऐसी नई रणनीति का प्रस्ताव रखता हूं जो केवल प्रतीकात्मकता से आगे बढ़कर वास्तविक प्रतिरोध, जवाबदेही, आक्रामक क्षमता और संस्थागत जड़ता की सफाई सुनिश्चित करे।

दुश्मन को नाम दो, राज्य की निष्क्रियता को उजागर करो

अब भ्रम फैलाने का समय नहीं। दुश्मन सिर्फ सीमा पार नहीं है वह हमारी संस्थाओं की छिद्रपूर्णता, खंडित खुफिया तंत्र, और निर्णायक कार्रवाई की राजनीतिक अनिच्छा में भी छिपा है। हर हमले के बाद सरकार की प्रतिक्रियाएं एक तयशुदा ढर्रे पर चलती हैं — निंदा, शोक संदेश और कमेटी का गठन। जब तक इन बातों के बाद ठोस कार्रवाई न हो, तब तक यह पीड़ितों का अपमान है।

त्वरित, निरंतर सैन्य प्रतिकार

• एकल सर्जिकल स्ट्राइक की नीति अब विफल: एक बार की कार्रवाई केवल आंतरिक राजनीति के लिए है, दुश्मन के लिए नहीं। ज़रूरत है एक निरंतर दंडात्मक अभियान की जो समय और स्थान दोनों पर फैला हो।
• निर्धारित सैन्य लक्ष्य: हमले के 10 दिनों के भीतर POK में स्थित कम से कम 5 चिन्हित TRF/LeT शिविरों को नष्ट किया जाए।
• Target Kill Lists: सीमापार चिन्हित आतंकियों, योजनाकारों और उनके हैंडलर्स को तय समय में समाप्त किया जाए।
• स्थायी आतंकवाद विरोधी टास्क फोर्स (CTTF): तीनों सेनाओं की, खुफिया एजेंसियों से जुड़ी एक स्थायी इकाई, जो केवल शत्रु क्षेत्र में असममित अभियानों के लिए हो।

आतंकी ढांचे को प्रतीकात्मक नहीं, रणनीतिक रूप से ध्वस्त करें

• गुप्त वित्तीय तंत्र को तोड़ना: हवाला, क्रिप्टो और NGO के जरिए आने वाली आतंकी फंडिंग को साइबर माध्यम से तोड़ा जाए। विदेशी बैंक, फर्म, और व्यक्ति जो TRF/LeT/JeM को सहायता देते हैं—उनका नाम सार्वजनिक किया जाए।
• ड्रोन निगरानी व सटीक हमले: POK में इज़राइल-शैली ड्रोन युद्ध नीति अपनाई जाए—कानूनी, नैतिक और कूटनीतिक आधार बनाए जा सकते हैं।
• छाया से बदला: RAW और विशेष बलों को “गहन घुसपैठ और लक्षित सफाई” की नीति पर पूर्ण स्वतंत्रता दी जाए।

सुरक्षा तंत्र की जवाबदेही तय हो

• सीधी जवाबदेही तय हो।
• तत्काल निलंबन: पहलगाम क्षेत्र के ज़ोनल इंटेलिजेंस प्रमुखों, पुलिस अधिकारियों व प्रशासकीय अधिकारियों को निलंबित किया जाए।
• जांच आयोग: एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीश और सैन्य अधिकारी द्वारा 60 दिन में रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।
• NSA की भूमिका की समीक्षा: NSA कार्यालय को भी खुफिया विफलताओं के लिए जवाबदेह बनाया जाए। एक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ हों, स्वतंत्र रूप से निगरानी करे।

कानूनी सुधार: पूर्व-हथियारी कार्रवाई को सक्षम बनाना

• UAPA और AFSPA में संशोधन कर उच्च स्तरीय पूर्व-अनुमोदन प्रणाली बनाई जाए, ताकि बिना देरी के खतरे का त्वरित निवारण संभव हो।
• पर्यटन क्षेत्रों में सुरक्षा का सैन्य अधिकार: Armed Forces को संवेदनशील पर्यटन क्षेत्रों में क्षेत्रीय सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी जाए, न कि केवल हमले के बाद फ्लैग मार्च।

खुफिया तंत्र का पुनर्निर्माण—नींव से

• साइলো संस्कृति का अंत: NIA, IB, RAW और सैन्य खुफिया को एकीकृत मंच पर लाया जाए जहां वास्तविक समय में सूचना साझा हो—इसके लिए एक राष्ट्रीय आतंकी खतरा केंद्र (NTTC) की स्थापना हो।
• स्थानीय खुफिया नेटवर्क: जमीनी स्तर पर सूचनाओं के लिए प्रोत्साहन आधारित और प्रशिक्षित स्थानीय मुखबिरों की प्रणाली बने, विशेषकर दक्षिण कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में।

शून्य सहिष्णुता की नीति—रणनीतिक संयम अब घातक है

• सीमापार आतंक को युद्ध की कार्यवाही घोषित करें: इससे अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत जवाबी कार्रवाई और राजनयिक/व्यापारिक संबंधों को समाप्त करने का मार्ग खुलेगा।
• पाकिस्तान की ‘प्लॉज़िबल डिनायबिलिटी’ की अवधारणा खत्म हो: हर हमले के बाद एकत्र और अप्रमाणित डोज़ियर सार्वजनिक किए जाएं, जिसमें पाक सेना और ISI अधिकारियों का नाम स्पष्ट हो।

राष्ट्रीय शोक प्रोटोकॉल व नागरिक सतर्कता बल

• 3 दिन का घोषित राष्ट्रीय शोक: बड़े पैमाने पर नागरिकों के खिलाफ आतंकी हमले पर राष्ट्रीय स्तर पर शोक घोषित हो, ताकि शोक नहीं बल्कि राष्ट्रीय संकल्प झलके।
• Civic Vigilance Corps: राज्यों में स्थानीय पुलिस और IB की निगरानी में प्रशिक्षित, पंजीकृत और मोबाइल स्वयंसेवी दल बनें—क्योंकि खुफिया सिर्फ एजेंसियों की जिम्मेदारी नहीं।

राजनीतिक नेतृत्व भी जिम्मेदारी से बचे नहीं

• स्थायी संसदीय समिति: पूर्व CDS, खुफिया प्रमुखों और सांसदों की अध्यक्षता में एक स्थायी समिति बने जो आतंकवाद विरोधी रणनीति की हर छह महीने में समीक्षा करे।
• गृह मंत्री व NSA 72 घंटे में राष्ट्र को ब्रीफ करें: हमले के बाद 72 घंटे में NSA और गृह मंत्री को राष्ट्र के सामने आकर उठाए गए कदमों की जानकारी देनी चाहिए—अब और चुप्पी नहीं।

निष्कर्ष: शोक से सैन्य सिद्धांत की ओर

पहलगाम भारत का 9/11 बनना चाहिए — केवल भाषण में नहीं, बल्कि रणनीति, क्षमताओं और संकल्प में अटल परिवर्तन के रूप में। अगर यह त्रासदी भी केवल एक और ‘रिव्यू मीटिंग’ में सिमट गई, तो हम 28 नागरिकों की शहादत का अपमान करेंगे और दुश्मन को यह संकेत देंगे कि भारत फिर से लहूलुहान हो सकता है।

भारत को प्रतिशोध नहीं, आतंक पर स्थायी, अडिग और भयावह विजय चाहिए।

जय हिंद।

ब्रिगेडियर सर्वेश दत्त ‘पहाड़ी’ डंगवाल
पूर्व सैनिक, भारतीय सशस्त्र व अर्धसैनिक बल

Yogi Varta

Yogi Varta

Related articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *