गढ़वाल के युगपुरुष, स्वतंत्रता संग्राम के नायक और पहाड़ के मसीहा जगमोहन सिंह नेगी

गढ़वाल के अमर सपूत, स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी और उत्तराखंड के प्रथम खाद्य मंत्री जगमोहन सिंह नेगी की 57वीं पुण्यतिथि 30 मई 2025, को मनाई गई। यह दिन न केवल उनके बलिदान और समर्पण को स्मरण करने का अवसर है, बल्कि उस युग को भी याद करने का क्षण है, जिसे ‘जगमोहन युग’ के रूप में जाना जाता है।
वह युग, जब पहाड़ की दुर्गम वादियों में एक नायक ने अपने अटूट संकल्प और सेवा भाव से लाखों लोगों के जीवन को नई रोशनी दी।
प्रारंभिक जीवन: देशभक्ति और समर्पण की नींव
5 जुलाई 1905 को पौड़ी गढ़वाल के कांडी गांव में जन्मे जगमोहन सिंह नेगी का जीवन एक ऐसी प्रेरक गाथा है, जो साहस, संघर्ष और सेवा का प्रतीक है। उनके पिता, कोटद्वार में रेंजर के पद पर कार्यरत एक प्रभावशाली व्यक्तित्व थे, जिन्होंने अपने पुत्र में नेतृत्व और कर्तव्यनिष्ठा के बीज बोए।
पिता का स्वप्न था कि उनका पुत्र एक मजिस्ट्रेट बने, जो उस दौर में न केवल प्रतिष्ठित, बल्कि सामाजिक बदलाव का एक सशक्त माध्यम भी था। इस स्वप्न को साकार करने के लिए जगमोहन को पौड़ी के ब्रिटिश कलेक्टर के पास शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए भेजा गया। चुनौतियों और बाधाओं के बावजूद, उनकी दृढ़ता और लगन ने उन्हें न केवल अपने पिता के स्वप्न को पूरा करने में सक्षम बनाया, बल्कि देशसेवा के एक बृहत्तर लक्ष्य की ओर प्रेरित किया।
शिक्षा के दौरान ही जगमोहन में देशभक्ति की ज्वाला प्रज्वलित हुई। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अत्याचारों और अपने पहाड़ी समुदाय की पीड़ा ने उनके हृदय में स्वतंत्रता के लिए एक अटल संकल्प जागृत किया। यही वह आधार था, जिसने उन्हें एक सामान्य युवा से गढ़वाल के युगपुरुष में परिवर्तित किया।
स्वतंत्रता संग्राम: जन-जन के प्रेरणास्रोत
1930 के दशक में जगमोहन सिंह नेगी ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। 1930 के सत्याग्रह आंदोलन में उनकी भागीदारी ने गढ़वाल के लोगों के बीच उन्हें एक जननायक के रूप में स्थापित किया। उनके जोशीले भाषण और जनता से सीधा जुड़ाव उनकी विशेषता थी।
1936 के चुनावों के दौरान, जब पंडित जवाहरलाल नेहरू गढ़वाल आए, जगमोहन ने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर प्रचार किया। उनकी वक्तृत्व कला और जनता के प्रति समर्पण ने न केवल भीड़ को मंत्रमुग्ध किया, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम को एक नई गति प्रदान की।
1946 में, जब आजाद हिंद फौज के सैनिकों का स्वागत करने के लिए गढ़वाल की घाटियां ‘जय हिंद’ के नारों से गूंज उठीं, जगमोहन नेगी इस उत्साह के केंद्र में थे। उनकी लोकप्रियता और जनता के प्रति उनकी निष्ठा ने उन्हें राजनीतिक मंच पर और भी सशक्त बनाया। उनकी यह लोकप्रियता केवल शब्दों तक सीमित नहीं थी, यह उनके कर्मों और संघर्षों का प्रतिबिंब थी, जिसने उन्हें बार-बार जनता का विश्वास दिलाया।
राजनीतिक यात्रा: गढ़वाल के लिए एक नया सवेरा
जगमोहन सिंह नेगी की राजनीतिक यात्रा 1936-37 में प्रारंभ हुई, जब उन्होंने लैंसडाउन विधानसभा सीट से पहला चुनाव जीता। यह जीत केवल एक राजनीतिक सफलता नहीं थी, बल्कि गढ़वाल के लोगों के लिए उनके समर्पण का प्रतीक थी।
1946 के चुनावों में उनकी लोकप्रियता और बढ़ी, और उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता को और सशक्त किया। भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत ने उनकी प्रतिभा और सेवा भाव को पहचाना और उन्हें विधानसभा सचिव नियुक्त किया। यह नियुक्ति जगमोहन के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर थी, जिसने उन्हें गढ़वाल के राजनीतिक परिदृश्य में एक सशक्त आवाज प्रदान की।
1952 में, जगमोहन ने चौंद कोट-गंगासलन निर्वाचन क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा और विजयी हुए। उनकी वन विभाग की विशेषज्ञता को देखते हुए पंत ने उन्हें वन विभाग में उपमंत्री नियुक्त किया। इस पद पर उन्होंने न केवल विभाग में सुधार किए, बल्कि गढ़वाल के प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और उपयोग में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उनकी कार्यकुशलता और प्रबंधन क्षमता ने वन विभाग को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। 1957 के चुनावों में उनकी निरंतर सफलता ने उन्हें योजना विभाग में उपमंत्री और बाद में भारी उद्योग और खाद्य आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों में राज्य मंत्री के रूप में पदोन्नति दिलाई। उनकी यह यात्रा उनके दृढ़ संकल्प, बुद्धिमत्ता और जनसेवा के प्रति अटूट समर्पण का प्रमाण थी।
चमोली जिला का गठन: एक ऐतिहासिक उपलब्धि
जगमोहन सिंह नेगी की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक 24 फरवरी 1960 को पौड़ी गढ़वाल से चमोली को एक अलग जिला के रूप में स्थापित करना था। यह निर्णय केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए एक क्रांतिकारी कदम था।
चमोली की भौगोलिक और सांस्कृतिक विशिष्टताओं को समझते हुए, जगमोहन ने मुख्यमंत्री को तर्क और तथ्यों के साथ यह समझाया कि एक अलग जिला न केवल आवश्यक है, बल्कि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए अनिवार्य है। उनकी प्रेरक क्षमता और दूरदर्शिता ने इस प्रस्ताव को मूर्त रूप दिया, जिसका लाभ आज भी चमोली के निवासियों को मिल रहा है।
1962 का अकाल और खाद्य मंत्रालय: पहाड़ का मसीहा
1962 का वर्ष भारत के लिए अनेक चुनौतियों से भरा था। भारत-चीन युद्ध के बाद देश खाद्य संकट से जूझ रहा था, और पहाड़ी क्षेत्रों में यह संकट और भी गहरा था। अमेरिका से खाद्यान्न आयात पर निर्भरता बढ़ गई थी, और गढ़वाल जैसे दुर्गम क्षेत्रों में राशन की कमी ने जनजीवन को संकट में डाल दिया था।
ऐसे समय में, जगमोहन सिंह नेगी, जो उस समय उत्तर प्रदेश के खाद्य आपूर्ति मंत्री थे, ने एक सच्चे नायक की तरह पहाड़ के लोगों की पुकार सुनी। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि गढ़वाल और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों को सरकार द्वारा निर्धारित कोटे से अधिक खाद्यान्न आवंटित हो।
यह केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं था, बल्कि उनके हृदय में बसे पहाड़ी लोगों के प्रति प्रेम और करुणा का परिणाम था। उनके इस प्रयास ने हजारों परिवारों को भुखमरी से बचाया और उन्हें ‘पहाड़ का मसीहा’ का दर्जा दिलाया। उनके इस योगदान को गढ़वाल के लोग आज भी श्रद्धा और गर्व के साथ याद करते हैं।
विरासत और प्रेरणा
जगमोहन सिंह नेगी का निधन 30 मई 1968 को कोटद्वार में हृदयाघात के कारण हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। उनके निधन पर उत्तराखंड के प्रमुख नेताओं, जैसे श्री भक्त दर्शन, ने उनकी ईमानदारी, योग्यता और जनसेवा के प्रति समर्पण की प्रशंसा की।
भक्त दर्शन ने उन्हें गढ़वाल का गौरव बताते हुए कहा कि जगमोहन ने कभी छल या चापलूसी का सहारा नहीं लिया, उनकी सफलता उनकी क्षमता और निष्ठा का परिणाम थी। जगमोहन की विरासत को उनके पुत्र, चंद्रमोहन सिंह नेगी ने आगे बढ़ाया, जो सांसद, पर्वतीय विकास मंत्री और पर्यटन मंत्री के रूप में उत्तराखंड के विकास में योगदान देते रहे।
जगमोहन की पत्नी, जो सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी जयकृत सिंह बिष्ट की बहन थीं, भी उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं। उनका परिवार आज भी उनकी सेवा और बलिदान की भावना को जीवित रखे हुए है।
जगमोहन सिंह नेगी केवल एक राजनेता नहीं थे, वे गढ़वाल की आत्मा थे, पहाड़ के लोगों की आवाज थे, और स्वतंत्रता संग्राम के एक सच्चे योद्धा थे। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची नेतृत्व वह है, जो अपने लोगों के दुख-दर्द को समझे, उनके लिए लड़े, और उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए हर संभव प्रयास करे।
1962 के अकाल में उनकी भूमिका, चमोली जिला का गठन, और स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान उन्हें एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व बनाता है।
शीशपाल गुसाईं