कंडोलिया और नागदेव के जंगलों में बसा है पक्षियों का दुर्लभ संसार

व्योमेश चन्द्र जुगरान, पौड़ी
गढ़वाल मंडल के मुख्यालय पौड़ी में पिछले माह आयोजित ‘जय कंडोलिया महोत्सव’ के दौरान ‘बर्ड वाचिंग’ की अभिनव पहल यूं भी रंग लाई कि मायावी कहा जाने वाला पक्षी ‘ब्राउन वुड आउल’ यहां के जंगलों में पहली बार देखा गया। बड़ा आकार, गहरा भूरा रंग, बड़ी आंखें और तेज आवाज वाले उल्लू की यह प्रजाति दुलर्भ पक्षियों में शुमार है और इस पर लुप्तता का खतरा मंडरा रहा है।
इसीलिए इसे ‘खतरे के करीब’ वाले पक्षियों श्रेणी में रखा गया है। पौड़ी में खासकर दिन में इस पक्षी की मौजूदगी ने पक्षी प्रेमियों का ध्यान बरबस ही यहां के जंगलों की ओर खींचा है।
पक्षी विशेषज्ञ जब किसी नए पक्षी को देखते हैं तो वे इसे ‘लाइफर’ कहते हैं। पौड़ी के नागदेव व कंडोलिया के जंगलों में एक नहीं, दो-दो लाइफर देख पक्षी अध्येता सतपाल गांधी तो उछल पड़े और इन जंगलों में चहचहाते पक्षियों के अपरिमित संसार और यहां बिखरी जैव विविधता के मुरीद हो गए।
ब्राउन वुड आउल के अलावा उन्होंने जो दूसरा लाइफर यहां देखा वह था ग्रे क्राउन्ड गोल्डफिन्च। यह बेहद खूबसूरत पक्षी है जिसके चेहरे पर गाढ़ा लाल रंग और पंखों पर चमकदार पीली छीट होती है।
हिमालयी क्षेत्र में यह एक प्रवासी पक्षी है और ऊंचाई वाले इलाकों में ही प्रजनन करता है। हालांकि हिमालयन गोल्डफिन्च को यूरोपीय गोल्डफिन्च का ही सहोदर मानकर इसे अलग प्रजाति की मान्यता नहीं थी लेकिन जब बारीकी से इसके फीचर्स देखे गए तो ‘बर्ड लाइफ इंटरनेशन’ ने 2016 में इसे अलग प्रजाति मान लिया। 2024 में अंतरराष्ट्रीय पक्षीविज्ञान कांग्रेस (आईओसी) ने भी इसे अपनी सूची में शामिल कर लिया।
पौड़ी के जंगलों में इन दो लाइफर्स की मौजूदगी यहां की जैव विविधता को दर्शाती है। सतपाल गांधी पौड़ी को एक छिपा हुआ खजाना करार देते हुए कहते हैं कि यदि आप पक्षी प्रेमी हैं तो पक्षियों की एक विस्मयी दुनिया यहां आपकी प्रतीक्षा में है।
उन्होंने बताया कि एक बर्ड-वाचर के रूप में वह गढ़वाल के विभिन्न अंचलों में गए हैं, पर पौड़ी को पहली बार देखा। यहां कंडोलिया और नागदेव का भव्य वनावरण जंगल सफारी व बर्ड-वाचिंग की अपार संभावना लिए हुए हैं।
पेड़ों और घने झुरमुटों में चहचहाती अनेक खूबसूरत चिडि़याओं को यहां न सिर्फ सैंदिष्ट देखा जा सकता है, बल्कि तनिक रुक कर इनके अनूठे स्वभाव का सरल अध्ययन भी किया जा सकता है। वन विभाग के अनुमान के मुताबिक पौड़ी में पक्षियों की करीब 180 प्रजातियां हो सकती हैं।
पिछले साल वन विभाग, देहरादून के सहयोग से की गई गणना के मुताबिक राज्य के 13 जिलों में पक्षियों की 729 प्रजातियां पाई गईं। इनमें कुछ लुप्तप्राय: और दुर्लभ हैं। पक्षी विविधता के मामले में नैनीताल जिला सबसे संपन्न घोषित किया गया है। यहां 251 प्रजाति के पक्षी पाए गए।
इसके बाद देहरादून और फिर पौड़ी का नंबर है। यह स्थिति बताती है कि उत्तराखंड में पर्यटन के नजरिये से बर्ड सेंचुरी के विकास की अपार संभावनाएं हैं।
हालांकि पक्षी प्रेमियों का स्वर्ग कहने वाले कई अभयारण्य यहां हैं। इसमें आसन, जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क, बिनसर, पंगोट-किलबरी और नैनादेवी हिमालयन बर्ड रिजर्व प्रमुख हैं। इनके अलावा सातताल, रामगढ़ और जागेश्वर में भी पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां देखने लोग पहुंचते हैं।
अब मुख्यालय पौड़ी भी बर्ड-वाचिंग डेस्टीनेशन के रूप में पहचान बनाने को उतावला है। ‘जय कंडोलिया महोत्सव’ के अंतर्गत आयोजित ‘बर्ड वाचिंग ईवेंट’ इन्ही प्रयासों की कड़ी में था। पक्षियों को जानने-समझने की इस शानदार सैर के रचनाकार जाने-माने पर्यटन विशेषज्ञ प्रशान्त नेगी और स्थानीय नगरपालिका अध्यक्षा हिमानी नेगी थे।
नागदेव-कंडोलिया के जंगलों में दो दिन के पक्षी-विहार कार्यक्रम में युवा विद्यार्थियों सहित डेढ़ दर्जन से अधिक पर्यटन और पक्षी प्रेमी शामिल हुए।
इस अवसर पर चिडि़यों के अध्येता सतपाल गांधी और दिनेश रावत ने पक्षियों की अनेक प्रजातियों से रू-ब-रू कराया- ट्री क्रीपर, रसल स्पैरो, हिमालयन बुलबुल, हिमालयन गुड फ्रिंज, मैकप्राइड रॉबिन, अबाबील, रेड वेंटेड, यलो वेंटेड, ग्रेविंग ब्लैकबर्ड, हिल टी, रोजरिंग, जंगल स्पैरो, ब्लैक क्राउन जे, हिमालयन डेवलर, कूपर स्मिथ और चीड फिजेंट।
पक्षी विशेषज्ञों ने जब इन्हें सैंदिष्ट दिखाया और उनकी अलग-अलग विशेषताएं बताईं तो लगा जंगल की असली शान तो इन्हीं परिन्दों से है।
इनमें से कुछ कभी भी जमीन को नहीं छूते, कुछ सिर्फ पेड़ के तने पर घूमते रहते हैं, कुछ का अधिकांश वक्त सिर्फ उड़ने में बीतता है और कुछ ऐसे भी हैं जो अपने अंडों की देखभाल अन्यों के सुपुर्द कर एक निश्चित अवधि पर ही लौटते हैं।
घोंसला तैयार करने से लेकर चारा, खान-पान और पानी व मिट्टी में स्नान जैसे कई अचंभे पक्षियों की दुनिया का विविध रूप हैं। विशेषज्ञों की माने तो जंगल का शौक पक्षियों के बसेरे के रूप में देखने की ख्वाहिश के साथ पालें। पर, जंगल की पवित्रता को इस हद तक बरकरार रखें कि अपने पदचाप तक वहां न छोड़ें।