उत्तराखंड बन रहा है नकली दवाओं का गढ़, विभागीय लापरवाही से जनता हो रही है परेशान

उत्तराखंड बन रहा है नकली दवाओं का गढ़, विभागीय लापरवाही से जनता हो रही है परेशान

उत्तराखंड में नकली दवाओं का कारोबार खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। हाल के महीनों में रुड़की और उसके आसपास के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में नकली दवा फैक्ट्रियाँ पकड़ी गई हैं।

इस अवैध कारोबार की व्यापकता और इसके पीछे की मजबूत नेटवर्किंग ने राज्य को देशभर के नकली दवा माफियाओं के लिए एक “सॉफ्ट टारगेट” बना दिया है।

खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (FSSAI) की भूमिका पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। विभाग का विजिलेंस तंत्र केवल कागजों पर सक्रिय है, जबकि फील्ड में निगरानी और कार्रवाई शून्य जैसी है।

इसी वर्ष मई में प्रेमनगर पुलिस द्वारा जब्त की गई 68,000 प्रतिबंधित कैप्सूल और 12,000 गोलियों के मामले के बाद विभाग की कार्रवाई कुछ दिन चली और फिर ठंडे बस्ते में डाल दी गई।

विशेषज्ञों के अनुसार, ड्रग विभाग में भारी स्टाफ की कमी और संसाधनों का अभाव इस समस्या को और गंभीर बना रहा है।

राज्य में 33 औषधि निरीक्षक और 6 वरिष्ठ निरीक्षक के पद तो स्वीकृत हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि अधिकतर पद रिक्त हैं। एक-एक निरीक्षक को तीन-तीन ज़िलों की जिम्मेदारी सौंपी गई है, जिससे प्रभावी निगरानी असंभव हो गई है।

ऑनलाइन दवा बिक्री ने इस समस्या को और विकराल बना दिया है। अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे प्लेटफॉर्मों से नकली और प्रतिबंधित दवाओं की बिक्री के मामले सामने आने के बाद, DGCI ने इन्हें नोटिस जारी किया है।

गंभीर चिंता की बात यह है कि यह समस्या केवल घरेलू नहीं रही। भारतीय दवा कंपनियों द्वारा निर्मित कुछ दवाओं से विदेशों में, जैसे गांबिया और उज्बेकिस्तान में, बच्चों की मौत के मामले सामने आए हैं। इससे भारतीय फार्मा उद्योग की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी धूमिल हुई है।

नकली दवा माफिया न केवल स्वास्थ्य के लिए खतरा हैं, बल्कि यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला बनता जा रहा है। यदि विभाग समय रहते नहीं चेता, तो यह कारोबार आने वाले समय में और भयावह रूप ले सकता है।

इस बीच औषधि नियंत्रक द्वारा राज्यभर में दवा निरीक्षण के लिए नया अभियान शुरू किया गया है और लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी गई है।

परंतु सवाल यही है कि क्या यह कार्रवाई स्थायी होगी या फिर यह भी अन्य अभियानों की तरह समय के साथ ठंडी पड़ जाएगी?

राज्य सरकार से मांग की जा रही है कि:

  • ड्रग विभाग में त्वरित नियुक्तियां की जाएं।
  • औषधि निरीक्षकों को आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।
  • ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर बिकने वाली दवाओं की सख्त निगरानी हो।
  • आम जनता को नकली दवाओं की पहचान और उनसे बचाव के बारे में जागरूक किया जाए।

यह विषय केवल स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि मानव जीवन की रक्षा का है। उत्तराखंड की जनता अब ठोस कार्रवाई की प्रतीक्षा कर रही है।

Yogi Varta

Yogi Varta

Related articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *