भगवान राम, कृष्ण व शंकर के बिना भारत का पत्ता भी नहीं हिल सकता : सीएम योगी

गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि भगवान श्रीराम, प्रभु श्रीकृष्ण और देवाधिदेव महादेव शंकर के बिना भारत का पत्ता भी नहीं हिल सकता है।
प्रखर समाजवादी डॉ. राम मनोहर लोहिया भी कहते थे कि भारत में जब तक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, लीला पुरुषोत्तम मुरलीधर भगवान श्रीकृष्ण और देवों के देव भगवान शंकर की पूजा होती रहेगी तब तक दुनिया में कोई माई का लाल भारत का बाल भी बांका नहीं कर पाएगा। डॉ. लोहिया के वर्तमान चेले भले ही उनकी बात न मानते हों लेकिन यह बात तय है कि जो राम विरोधी है, उसकी दुर्गति होनी ही है।
सीएम योगी ने गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ स्मृति भवन में विगत 4 जुलाई से चल रही श्रीरामकथा के विश्राम सत्र और गुरु पूर्णिमा महोत्सव को संबोधित कर रहे थे।
गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन महंतद्वय दिग्विजयनाथ जी महाराज एवं महंत अवेद्यनाथ जी महाराज के चित्र पर पुष्पार्चन करने तथा व्यासपीठ का पूजन करने के उपरांत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि श्रीराम कथा और देवी-देवताओं से जुड़ीं अन्य कथाएं भारतीय संस्कार का हिस्सा हैं।
उन्होंने रामायण मेलों की शुरुआत करने वाले डॉ. राम मनोहर लोहिया का उल्लेख कर सनातन धर्म पर सवाल उठाने वालों को आईना दिखाया। मुख्यमंत्री ने कहा कि डॉ. लोहिया, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, प्रखर समाजवादी और कांग्रेस के प्रखर विरोधी थे।
आजादी के बाद जब भारतीयों की एकजुटता को लेकर कुछ लोगों ने शंका जताई थी तब उन्होंने जवाब दिया था कि राम, कृष्ण और शंकर की पूजा होने तक भारत की एकजुटता का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता।
प्रखर समाजवादी लोहिया के विचार से इतर आज के समाजवादी रामभक्तों पर गोली चलाते हैं। सीएम ने कहा कि उच्चकुल में पैदा होने के बावजूद मारीच की दुर्गति सबको पता है। उसका जन्म मनुष्य रूप में होता है जबकि पशु रूप में मारा जाता है।
दुर्गति से बचने को आचार और विचार में समन्वय की आवश्यकता
मुख्यमंत्री ने दुर्गति से बचने के लिए आचार और विचार में समन्वय की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि राम को भजते-भजते हनुमान जी भी पूज्य हो गए। अनपढ़ व्यक्ति भी हनुमान चालीसा जानता है,उसका पाठ करता है।
उन्होंने कहा कि श्रीराम, श्रीकृष्ण, भगवान शंकर और उनसे जुड़ी कथाएं हमारी आस्था की प्रतीक हैं, हमारी विरासत हैं। सुसभ्य संस्कृति की उत्कृष्टता के प्रतीक हैं। इनके संरक्षण और उन्नयन में योगदान देना हर भारतीय का कर्तव्य होना चाहिए। राम, कृष्ण और शिव सनातन धर्म के प्रतीक हैं।
सनातन धर्म भारत की आत्मा
मुख्यमंत्री ने कहा कि सनातन धर्म भारत की आत्मा है। एक मुस्लिम महिला अधिवक्ता के कथन, “हम भी सनातनी हैं, भारत का एक ही धर्म है सनातन धर्म, मेरी उपासना विधि इस्लाम है लेकिन धर्म सनातन है” का उल्लेख करते हुए सीएम ने कहा कि हमें धर्म, मत, महजब के अंतर को समझना होगा। सनातन धर्म मात्र उपासना विधि नहीं है बल्कि यह जीवन जीने की पद्धति है जिसमें अनेक उपासना विधियां समाहित हैं।
हजारों वर्षों से सुनी जा रही श्रीराम कथा
सीएम योगी ने कहा कि श्रीराम कथा हजारों वर्षों से सुनी जा रही है। यह भारत के संस्कार में शामिल है। दुनिया में ऐसा कोई भी सनातनी नहीं है जो श्रीराम कथा के प्रसंगों को न जानता हो।
उन्होंने कहा कि दुनिया में सबसे लोकप्रिय धारावाहिक रामायण है। जब देश की आबादी 100 करोड़ थी और 50 करोड़ लोगों के पास भी टेलीविजन नहीं था तब 66 करोड़ लोग रामायण धारावाहिक देखते थे। कोरोना काल में जब लॉकडाउन लगा था तब सबसे ज्यादा दर्शक दूरदर्शन पर रामायण देखते थे।
भारत ने दुनिया को सिखाया कृतज्ञता ज्ञापन
मुख्यमंत्री ने गुरु पूर्णिमा पर्व को गौरवशाली अवसर बताते हुए कहा कि यह पर्व गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर होता है। भारत ही ऐसा देश है जिसने दुनिया को कृतज्ञता ज्ञापन सिखाया।
हनुमान जी और मैनाक पर्वत के संवाद में भी यह उद्धरण आता है कि कर्ता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना सनातन धर्म का गुण है। किसी ने कुछ किया तो उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने में भारतीय सबसे अधिक जागरूक रहे हैं।
ज्ञान परंपरा को संहिताबद्ध किया भगवान वेद व्यास ने
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भगवान वेद व्यास की जन्मतिथि को गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाया जाता है। वेद व्यास जी ने भारतीय मनीषा की ज्ञान परंपरा को संहिताबद्ध कर पीढ़ियों के लिए उपकार किया।
भारतीयों पर यह आरोप लगता है कि उन्होंने धरोहरों को संरक्षित नहीं किया, उन्हें विज्ञान और आधुनिक ज्ञान की जानकारी नहीं है। वितंडावाद से भारतीयों को बदनाम करने का प्रयास किया गया।
उन्होंने कहा कि यह सच नहीं है। सबको याद रखना चाहिए कि दुनिया का सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद हैं। दुनिया जब अंधकार में जी रही थी तब भारत में वेदों की ऋचाएं रची जा रहीं थीं। हमारी मनीषा चेतना के विस्तार से ब्रह्मांड के रहस्यों का उद्घाटन कर रही थी।
आज दुनिया भौतिक विज्ञान पर ही काम कर रही है, दुनिया जब अवचेतन मन की तरफ बढ़ेगी तब हमारे वैदिक सूत्र ही मार्गदर्शन करेंगे। दुनिया को यह जानना चाहिए कि 3500 वर्ष पूर्व हजारों ऋषियों की कार्यशाला नैमिषारण्य में भारतीय ज्ञान परंपरा की रचना को लेकर हुई थी।